दोस्तों आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे एक ऐसे किले किले के बारेमे जो सिर्फ भारत में ही नहीं बालके पुरे दुन्यामे प्रसिद्ध है इस किले की इतिहास बहत पुरानी है ओर इसकी खूबसूरती दुन्या भरमें मशहूर है तो चलिए दोस्तों सुरु करते है।

history of amber fort in hindi


दोस्तों राजस्थान की राजधानी जयपुर का ऐतिहासिक आमेर किला भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है जो अरावली की ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ यह किला राजस्थानी कला और संस्कृति का एक अद्भुत उदाहरण है कछवाहा राजपूत राजा मान सिंह प्रथम जो कि मुगल बादशाह अकबर के 9 रत्नों में से एक थे उन्होंने 1589 में इस किले की नींव रखी थी और फिर उनके उत्तराधिकारी राजा लोग इस किले का विस्तार और नवीनीकरण का काम करवाते रहे।

जयपुर शहर को बसाने वाले महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के कार्यकाल में यानी के साल 1727 में यह किला बनकर तैयार हो गया था सुरक्षा की दृष्टि से उस जमाने में इस किले के चारों ओर लगभग 12 किलोमीटर की बाउंड्री वॉल भी बनाई गई थी और यही नहीं बल्कि आमेर किले से जयगढ़ किले तक जाने के लिए 1.5 किलोमीटर लंबी एक गुप्त सुरंग का निर्माण करवाया गया था यहां की एक एक चीज बहुत ही मजबूती से बनाई गई है।

उस जमाने में यहां पानी गर्म करने की ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता था जिसके बारे में सोच आप हैरान हो जाएंगे और यहां सब्जियों का उपयोग करके बनाई गई ये फ्रेस्को पेंटिंग्स आपको इतनी सुंदर लगेंगे कि आप को देखते रह जाएंगे इस किले में बना शीश महल भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा और खूबसूरत शीश महल है।

आपकी जानकारी के लिए मैं बता देता हूं कि साल 2013 में कंबोडिया में हुई मीटिंग के दौरान वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी ने आमिर आमिर किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित कर दिया था यह जयपुर शहर की भीड़ भाड़ से करीब 11 किलोमीटर दूर यह किला आमिर में पड़ता है।

दोस्तों जयपुर शहर को तीन भागों में बांटा गया है जो है ओल्ड सिटी, न्यू सिटी, और पिंकसिटी ओल्ड सिटी में बसा आमेर फोर्ट है जिसको अम्बर पैलेस के नाम से भी जाना जाता है किसी जमाने में यह जगह मीणा जनजाति के राजाओं की राजधानी हुआ करती थी जिन्हें साल 1037 में कछवाहा राजपूत ने हराकर अपने अधीन कर लिया था आमिर में बसावट करने के साथ ही साथ आमेर किले की नींव राजा मान सिंह प्रथम ने 1589 में रखी थी और इसको उन्होंने अपने residence के रूप में बनवाया था।

राजा लगभग अगले 138 सालों तक अपनी सुविधा के अनुसार यहां पर सुधार और निर्माण कार्य करवाते रहें और साल 1727 तक ऐसा ही चलता रहा क्योंकि सवाई जयसिंह द्वितीय के समय में कछवाहा राजपूत राजाओं ने अपनी राजधानी आमिर से जयपुर को शिफ्ट कर ली थी।

राजा मान सिंह मुगल बादशाह अकबर के दरबार में शामिल उनके 9 रत्नों में से एक थे जैसे कि तानसेन, बीरबल, अबुल, फजल वगैरा हुआ करते थे आमेर किला इसको अम्बर किला भी कहा जाता है इसका नाम यहां पर स्थित है।

जोधा बाई महल 

जोधा बाई महल किले के बाई ओर स्तिथ है कहा जाता है आमेर किला बनने से पहले जोधाबाई इसी बिल्डिंग में रहा करती थी और उनका जन्म भी इसी में हुआ था।

 शिला देवी मंदिर

यह किले के जलेब चौक से दक्षिणी भाग में शिला माता का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। इसका निर्माण सवाई मानसिंह ने 1604 में करवाई थी शिला देवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी रही हैं इस मंदिर में लक्खी मेला लगता है जो काफ़ी प्रसिद्ध है। इस मेले में नवरात्र में यहां भक्तों की भारी भीड़ माता के दर्शनों के लिए आती है। शिला देवी की मूर्ति के पास में भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगला की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।


 जानिए भारत के प्राचीन और ऐतिहासिक किले के बारे में 

रावण हत्था 

ऐसा कहा जाता है कि रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए ये इंस्ट्रूमेंट बजाया था तो इस इंस्ट्रूमेंट को जयपुर जोधपुर और उदयपुर में बजाया जा रहा है।

पेहला आँगन

पहले आंगन जिसे जलेब चौक भी कहा जाता है जो कि उस जमाने में सैनिकों का परेड ग्राउंड हुआ करता था ओर यहां होली दीवाली जैसे अन्य त्योहार और महोत्सव भी आयोजित किए जाते थे।

 सूरजपोल

इस महल में प्रवेश करने के दो दरवाजे बनाए गए थे पहला दरवाजा सूरजपोल यानी के sungate जो के राजाओं का प्रवेश द्वार हुआ करता था सूर्य की पहली किरण इसी दरवाजे पर पड़ती है और पोल का मतलब होता है गेट इसीलिए इसको सूरजपोल के नाम से जाना जाता है तो उस समय में राजा महाराजा हाथियों द्वारा इस महल में इसी दरवाजे से प्रवेश किया करते थे और आज भी सुबह आठ बजे से ग्यारह बजे के बीच में हाथी इसी दरवाजे से अंदर आते हैं।

नकार खाना

किले के अंदर नकार खाना है जहा पे पांच छे इंस्ट्रूमेंट जब यहां एक साथ बजाय जाते थे तो इसको नकारा कहा जाता था और खाना का मतलब होता है जगह इसी वजह से इसको कहा जाता है नकार खाना जब राजा महाराजाओं की इस महल में एंट्री होती थी तो उनके स्वागत के लिए इस नक्कारखाने में ड्रम्स और बाकि इंस्ट्रूमेंट्स बजाय जाते थे।

चांदपोल

चांदपोल यानि की moongate चांद इसी दिशा से निकलता है इसलिए इसका नाम चांदपोल है और यह आम जनता के आने जाने का रास्ता हुआ करता था।


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दीवाने आम (दूसरा आँगन )

दीवाने आम यानी की पब्लिक ऑडियंस हॉल और इसका निर्माण मिर्जा राजा मान सिंह ने 16 वीं शताब्दी के अंत में करवाया था उनके बाद के उत्तराधिकारी राजा फिर आपने जरूर के अनुसार यहां पर निर्माण कार्य करवाते रहें।

इस दीवाने आम में उस जमाने में जनता दरबार लगता था तो राजा सामने बैठते थे बीच के हिस्से में मिनिस्टर्स बैठा करते थे ओर बाहर की तरफ में आमजनता इसी जगह पर बैठकर राजा आम लोगों की परेशानियों को सुनकर न्याय किया करते थे।

यहाँ नीचे में बैठने के लिए कारपेट बिछाई जाती थी और छत पर रिंग्स लगी हुई हैं रिंग की मैडम से कपडे लगाए जाते थे जिनको डोरियो से खींचकर पंखों की तरह इस्तेमाल किया जाता था इस इमारत के चारों तरफ में बाहर की ओर ऐसे ही कड़े लगे हुए हैं जिनमें गर्मी से बचाव के लिए परदे लगाए जाते थे और रात के समय में रौशनी के लिए यहां पर साल जला दी जाती थी।

48 स्तंभ (pillers) के माध्यम से इस दीवाने-ए-आम को बनाई गई है जिनमें से 16 स्तंभ सफेद संगमरमर के हैं और बाकी के 32 स्तंभ लाल बलुआ पत्थर यानी के रेड सैंड स्टोन के हैं हर पिलर के ऊपर आपको हाथी बना हुआ दिखाई देगा क्योंकि हिन्दू धर्म के अनुसार शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

गणेश पोल

गणेश पोल महाराजाओं के प्राइवेट महलों में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था हिन्दू धर्म के अनुसार जब भी कभी नया महल या मकान बनवाया जाता था तो उसके आगे गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित की जाती थी इसी वजह से इस द्वार पर आपको गणेश भगवान की पेंटिंग दिखाई देगी और इस पेंटिंग के अलावा भी आपको यहां पर बहुत ही खूबसूरत फ्रेस्को पेंटिंग्स देखने को मिल जाएंगी और ये सारी पेंटिंग 300 साल पुरानी ओरिजनल फ्रेस्को पेंटिंग्स हैं जिनको सब्जियों द्वारा बनवाया गया था।

सत्ताईस कचेहरी

सत्ताईस कचेहरी यानी कि लेखा जोखा विभाग उस समय में राजा के अंडर में सत्ताईस रजवाड़े हुआ करते थे और उन रजवाड़ों के जो अकाउंट होते थे उनका लेखा जोखा यहीं पर किया जाता था यहां पर आप देखेंगे कि सत्ताईस पिलर्स बनाए गए हैं क्योंकि इसको सत्ताईस अलग अलग भागों में बांटते हैं इन सत्ताईस खानों में अलग अलग विभाग के अधिकारी बैठकर सारा हिसाब किताब मेंटेन किया करते थे और इसी वजह से इसको सत्ताईस कचहरी कहा जाता है।

इस इमारत को संगमरमर का उपयोग करके बहुत ही अच्छी कलाकारी से बनाया गया है फिर चाहे यहां बने स्तंभों या छत हो या फिर खूबसूरत दरवाजे इस कचहरी के किनारे से किले का फ्रंट व्यू देखने के लिए मिलता है जोकि काफी खूबसूरत लगता है।

 सैफरन गार्डन

यानी कि केसर क्यारी तो राजा मान सिंह ने 16 शताब्दी में कश्मीर से केसर के पौधे मंगवा कर यहां लगवाए थे और केसर को लगवाने के लिए उन्होंने यहां झील का निर्माण करवाया था जिसको कहा जाता है मावठा झील लेकिन राजा यहां पर केसर उगाने में कामयाब नहीं हो पाए क्योंकि केसर केवल ठंडी जगहों पर ही उग सकता है तो उस जमाने में महल के चारों तरफ में खसखस को गीला करके यहां लगाया जाता था तो आपकी जानकारी के लिए मैं बता देता हूं कि खसखस वही होता है जो अब भी हम कूलर वगैरह में इस्तेमाल करते हैं तो जब इस झील की ठंडी हवा खसखस से छन कर इस महल से टकराती थी बहुत ही ठंडे वातावरण की अनुभूति होती थी।

हिंदी मूवी जोधा अकबर का गाना जश्ने बहारा का जो हिस्सा ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया है वह इसी गार्डन का है।

दिल आरामबाग (garden)

कहा जाता है कि आमेर किले को बनाने के लिए राजा मान सिंह ने जिस आर्किटेक्ट को काम दिया था उसका नाम डाला राम था और उसी के नाम पर यह गार्डन बना दिया गया था तो मुगल बादशाह अकबर जब पहली बार आमिर आए थे तो उन्होंने इसी गार्डन में आराम फरमाया था जिसके बाद उन्होंने इसको दिल आरामबाग कहा था यानी के दिल को सुकून पहुंचाने वाला बाग तो तब से इस को दिला राम या डला रामबाग दोनों ही नामों से जाना जाता है।


        भारत का सबसे खूबसूरत कला 


राजवंस हमाम

अरबी भाषा में हमाम शब्द का इस्तेमाल स्नान घर के लिए किया जाता था तो इस स्नान घर को राजा और उनका परिवार उपयोग किया करते थे।

उस जमाने में पानी गर्म करने के लिए बिजली की व्यवस्था तो थी नहीं और अगर अंदर में लकड़ियों को जलाकर पानी गर्म किया जाता तो पूरे स्नानघर में धुआं भर जाता तो यहां पर पानी गर्म करने के लिए स्नान घर के बाहर की तरफ में आपको उस जमाने का गीजर दिखाई देगा।

गीजर काम कैसे करता है

गीरज के नीचे में दो छेद आपको नजर आ रही हैं इनके अंदर में लकड़ियां जलाई जाती थी और अंदर में पानी का टैंक है इसमें कॉपर की प्लेट लगाई गई थी तो इन लकड़ियों के जलने से जो गर्मी पैदा होती थी उससे पहले इस टैंक कॉपर प्लेट और फिर उस पर रखा पानी गरम हो जाया करता था तो इस तरह से बाथरूम में पानी गर्म हो जाता था और धुंआ भी नहीं होता था।

राजा ओर रानीयों का स्नान घर

बाथरूम के साथ चेंजिंग रूम ओर दो टैंक (गरम पानी टैंक ओर ठंडी पानी टैंक) ओर बाथ टब भी मौजूद है टैंक के नीचे हिस्से में पाइप लगा हुआ है पाइप के रास्ते से पानी निचे नालियों के माध्यम से बाथ टब तक पहुँच जाता था।

बाथ टब को सुगंध के लिए चंदन गुलाब और इत्र वगैरह डाला जाता था यह बाथ टब मार्बल का बना हुआ है और यहां दीवारों को उड़द की दाल, मेंथी, गुड़ का पानी, नेचुरल गूंध, और मुल्तानी मिट्टी इन सब को लाइन के अंदर मिलाकर चार पाँच घंटे ग्राइंड किया जाता था और इस पेस्ट का उपयोग करके बनवाया गया था उसकी तासीर ऐसी होती थी जो हमाम को सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रखती थी तो यहां की दीवारों को आप छू कर महसूस कर सकते हैं कि एक इतनी ठंडी हैं तो इस तरह से स्नान घर को ठंडा रखा जाता था।

इसके छत पर आप देखेंगे कि खूबसूरत तुर्कीस डायमंड कट डिजाइन बनाया गया है जिसकी वजह से इसको तुर्कीस बात के नाम से भी जाना जाता है।

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दीवाने खास (तिरसा आंगन )

दीवाने खास में राजा अपने खास मेहमानों और दूसरे शासकों के राजदूतों से मिला करते थे इस दीवाने-ख़ास के अंदर चार इमारतें आती हैं जो है शीश महल शीश महल के ऊपर वाली मंजिल पर है जस मंदिर और सुहाग मंदिर और शीश महल के ठीक सामने में है सुख महल तो आइए अब जानते है आमेर किले का सबसे खूबसूरत महल यानी की शीश महल जिसको जय मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

शीश महल

शिश महल शीशों का उपयोग करके बनाया गया है इसलिए इसको कहा जाता है जितने भी ग्लास आपको यहाँ नजर आएंगे यह concave ग्लास हैं जिनमें सिल्वर की पॉलिश की गई है शीश महल के बाहरी ओर छत पर मार्बल के अंदर छेद करके परदे लगाये जाते थे छतो के चारो ओर हुक के माध्यम से खसखास लगाया जाता था जिसको पानी से भिगोया जाता था जिससे कि शीश महल का वातावरण ठंडा हो जाया करता था।

उस जमाने में पूरी दुनिया को ग्लास बेचने वाला देश हुआ करता था बेल्जियम तो राजा जयसिंह ने 1634 में बेल्जियम से ग्लास मंगवाए और फिर उन्होंने यहां के लोकल कारीगरों की मदद से इस इस खूबसूरत शीश महल का निर्माण करवाया था।

छत पे जो गोल्डन डिजाइन दिखाई देगी वह सारा रियल गोल्ड है इसके साथ बहत सारा कारपेट डिजाइन है और इसमें आप देखेंगे स्टोन की कटिंग करके या छोटे छोटे सीसों को फिट किया गया है ओर फर्श पर जितना भी मार्बल लगा हुआ है इस को जोड़ने के लिए कोई भी चूना मिट्टी या पत्थर का प्रयोग नहीं किया गया है बालके लोहे की कीलों से जोड़ा गया है।

सर्दियों के समय में शीश महल को बेडरूम की तरह इस्तेमाल किया जाता था और यहां पर मशाल जलाई जाती थी मसालों की रोशनी जब इन शीशों पर पड़ती थी तो यहां जो रिफ्लेक्शन पैदा होता था वो देखने लायक हुआ करता था।

राजा जयसिंह की एक रानी का बेडरूम शीश महल के दाईं तरफ में है और दूसरी रानी का बेडरूम बायीं ओर में है सीश महल का जो बीच वाला हिस्सा है यह कॉमन हॉल हुआ करता था और पीछे की तरफ में जो कमरा सीखेगा वह डाइनिंग हॉल यानी कि भोजनशाला हुआ करता था इसी जगह पर राजा अपने खास मेहमानों से मीटिंग किया करते थे इसीलिए शीश महल को दीवाने खास का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है।

कॉमन हॉल के अंदर जितने भी शीशे लगे हैं वह सारे रंग बिरंगे के सीशे हैं दीपक और मशाल की रोशनी से पूरा हॉल रंग बिरंगी रोशनी से जगमगाया करता था यह सीश महल भारत का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा शीश महल है।

सुहाग मंदिर

सुहाग मंदिर सुहागन महिलाओं के बैठने का स्थान हुआ करता था और अनमैरिड और वीरों को यहां आने की अनुमति नहीं होती थी।

राजा जब भी युद्ध के मैदान में जाते थे तो रानी उनके लिए यहां पर अखंड ज्योत जलाकर अपने सुहाग की कामना करती थी कि वह सही सलामत महल में वापस पधारें और जब तक राजा वापस नहीं आते थे यह ज्योति जलती रहती थी जब राजा युद्ध के मैदान से लौट कर वापस आते थे तो यहां बनी संगमरमर की खिड़की से रानी उन पर फूल बरसाकर उनका स्वागत किया करती थी।

इसी सुहाग मंदिर के खिड़की से रानियाँ बैठकर पब्लिक मीटिंग को सुना करती थी क्योंकि उस समय में पर्दा प्रथा चलती थी तो यह जालियां ऐसे बनाई गई थी जिनसे के रानियाँ यहां होने वाली मीटिंग को देख सकती थी लेकिन नीचे वाले किसी भी शख्स को रानी का चेहरा नजर नहीं आता था।

इस सुहाग मंदिर में भी आप खूबसूरत फ्रेस्को पेंटिंग्स की गई हैं यहां की दीवारों पर भी बहुत ही खूबसूरत कलाकारी की गई है जिसमें आपको कई फूल पत्तियां और साथ ही सादगी स्टैंड भी दिखाई देगा यहां की छत पर भी बीच में गोल्डन कलर से ओर किनारे में नीले रंग से बहुत ही सुंदर कलाकारी की गई है यही नहीं बल्कि यहां बनी जालियों में जो हनी कॉम यानी के मधुमक्खी के छत्ते जैसे डिजाइन संगमरमर को तराश कर बनाया गया है वह सुहाग मंदिर की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है।

जस मंदिर

इसके डिजाइन को आप देखेंगे तो यह आपको दुल्हन के पालकी की तरह नजर आएंगी इसके बीच में जो छतरी लगी है वह हाथी की पीठ की तरह बनाई गई है। जस मंदिर को गर्मियों के मौसम में प्राइवेट ऑडियंस के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था ओर शिश महल के जैसा महल इसके अंदर भी मजूद है लेकिन दुख की बात यह है के पर्यटको का इसके अंदर जाना अनिवार्य है।

सुख मंदिर

सुख मंदिर जिसको सुख महल यानी कि पहले सब प्लेजर के नाम से भी जाना जाता है इस महल के बाहरी दीवारों और छत पर बहुत ही खूबसूरत नक्काशी की गई है इस महल को भी संगमरमर का उपयोग करके बनाया गया है और इसके बाहर में छोटे छोटे खाने बने हुए हैं जो दीपक रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।

गर्मियों में दोपहर के समय में शाही परिवार के आराम करने के लिए इस महल का निर्माण करवाया गया था इसमें जो सफेद प्लास्टर का उभरा हुआ काम नजर आ रहा है वह मुगल अर्चिटेक्निचर से बनाया गया है इसके पीछे की दीवार पर संगमरमर का एक जालीदार झड़ना भी बना हुआ है जो कि एक खुली नाली से जुड़ा है इस महल की छत पर बनी टंकी से इस झरने में पानी बहता था जिससे कि यहां का वातावरण काफी ठंडा रहता था इस झरने का पानी न सिर्फ इस महल को ठंडा रखता था बल्कि महल के सामने में बने गार्डन में बहकर वहां भी इस्तेमाल में आ जाया करता था।

छत पर जो कड़े लगे हुए हैं उनमें झूले लगाए जाते थे शाही परिवार की महिलाएं यहां झूला झुला करती थीं इस भवन के दरवाजे चंदन की लकड़ी से बनाए गए थे और उन पर ivory यानी की हाथी दांत का पच्चीकारी का सुंदर काम किया गया था पहले यह दरवाजे बंद नहीं थे लेकिन जब पर्यटकों ने इनको छेड़ना शुरू कर दिया तो इनको कांच में बंद करना पड़ा।

शीशे के अंदर में आप देखेंगे कि एक वील चेयर रखी हुई है त्योहारों के समय में शाही परिवार की महिलाएं काफी भारी कपड़े और गहने पहनती थी इसकी वजह से उनको चलने में काफी दिक्कत हुआ करती थीं तो उनके लिए यह वील चेयर इस्तेमाल की जाती थी इसको दो महिलाएं आगे से और दो पीछे से खींचा करती थी ये वील चेयर चंदन की लकड़ी से बनी हैं और इस पर चारों तरफ मीनाकारी का सुंदर काम किया गया है।

चौथा आँगन 

राजा मानसिंह 1589 से लेकर 1614 तक राजा रहे थे और इस चौथे आँगन में आपको मानसिंह पैलेस, राजा की रानियों के लिए बनाये गये कक्ष ओर जानना महल भी देखने को मिलेगा।

रानीयों के कक्ष

राजा मान सिंह की बारह रानियां थीं और उन बारह रानियों के लिए बारह अपार्टमेंट बनवाए थे सभी रानियों के अपार्टमेंट एक जैसे ही बने हैं जिनमें बड़े कॉमन हॉल है इन अपार्टमेंट में खूबसूरत पेंटिंग बनाई गई हैं और इन अपार्टमेंट्स के अंदर और बाहर दोनों ही तरफ में आपको ऐसी पेंटिंग्स दिखाई देंगी। 

एक खास में आप को बतादू के एक रानी को दूसरे रानी के महल में जाने की अनुमति नहीं हुआ करती थी।

 बारादरी

रानियों को कोई भी परेशानी होती थी तो उनको इस बारादरी में बुलाया जाता था और फिर राजा यहां बीच में बैठ कर रानियों के समस्या का समाधान निकाला करते थे।

जनाना महल

जब भी यहां होली दीवाली जैसे त्योहार मनाए जाते थे तो बालकनी से एक बार में दो रानियाँ उन प्रोग्राम्स को देख सकती थी तो कुल मिलाकर यहां ऐसी 6 बालकनी बनाई गई हैं जिससे कि सारी रानियों को यहां होने वाले उत्साब देखने का अवसर मिल जाया करता था यहां पर किनारों में दो छतरियां बनी हैं जिनमें किन्नर खड़े होकर पहरा दिया करते थे क्योंकि यहां पर पुरुषों का प्रवेश पूरी तरीके से वर्जित था इसीलिए इस हिस्से को जनाना महल या जनानी ड्योढ़ी नाम से जाना जाता है।

 मान सिंह पैलेस

मान सिंह पैलेस इस किले का सबसे पुराना महल है और इसको बनाने के लिए पच्चीस साल लगे थे इस महल में चारो ओर गैलरी बनाई गई है जिसके जरिये राजा किसी भी रानी के पास चले जाते थे ओर राजा फिलहाल किस रानी के पास है किसी भी रानी को पता नहीं चलता था इस पैलेस को फिलहाल राजस्थान सरकार ने बंद किया हुआ है।



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                                                                                                            आपका दिन शुभ हों

 धन्यवाद